Monday, July 8, 2013

बधशाला -9

हिन्दू मुस्लिम वैमनस्य की , भड़क उठी सहसा ज्वाला
उसे बुझाने की हित उसने , खून पसीना कर डाला
आँक सके क्या फिर भी कीमत , मजहब के अंधे व्यापारी
कानपुर बन गया विधाता !, गणेश शंकर की बधशाला

जा प्रयाग में कुम्भ त्रिवेणी , नहाता है क्या ? मतवाला
धर्म कर्म सब अरे ! वृथा है , जब तेरा है दिल काला
पहले जा अल्फ्रेड पार्क में , होगा तीरथ तभी सफल
खोल गया "आजाद " दिलजला . आजादी हित बधशाला

रोशन सा दिलजला कौन है, लहरी सा विषधर काला
दीवाना "अश्फाक" बनादे , सबको "बिस्मिल" मतवाला
फांसी के तख्ते पर ! कीमत, आज़ादी की आँक गए
महा कृतघ्नी ! भूल गए जो , उन वीरों की बधशाला

13 comments:

  1. Behad achhee rachana...aazadeeke parwanon ko to ha kbse bhool gaye hain...

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  2. इतिहास याद दिलाती ...प्रभावशाली बधशाला ...!!

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  3. बेहतरीइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइइन !!!!!!!!!!!!

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  4. मैं हमेशा से ही ही कहती आई हूँ कि ...ये बधशाला आने वाले वक्त में अपने पूरे रंग में होगी

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  5. वधशाला ....बेहतरीन प्रस्तुति

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  6. बेहतरीन....किताब कब आ रही है?

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  7. आने वाले वक़्त में नहीं, जब से ये आ रही, तब से अपने पुरे रंग में हैं

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  8. पहली बार ब्लॉग पर आना हुआ अच्छा लगा ...बहुत बढ़िया

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  9. न जाने कितनी बातों पर बाँट दिया हमने इस जग को।

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  10. वैमनस्य की बधशाला को आज फिर जोरदार हवा दी जा रही है..सबक भुला कर .

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