बरस गए मेघ, रज कण में
तृण की पुलकावली भर
तुहिन कणों से उसके ,
अभिसिंचित हो उठे तरुवर
लिख कवित्त,विरुदावली गाते
लेखनी श्रेष्ठ कविवर
पादप, विटपि, विरल विजन में,
भीग रहे नख -सर
पा प्रेम सुधा को अंक में ,
स्वनाम धन्य हो रहे सरोवर
कृतार्थ भाव मानती धरा,
खग कुल -कुल गाते सस्वर
अलि गुंजत है अमलतास पर ,
ढूंढ़ रहे सुमधुर पराग
आली निरखत है निज प्रिय को,
भरे नयन अतुल अनुराग
प्रणयातुर विहग-कीट उल्लासित,
अविचल गाते प्रेम राग
कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
मेघो से कब सीखेंगे
ऊपर उठकर निज स्वार्थ से
युग बृक्ष को कब सीचेंगे
शत योजन आच्छादित मेघो पर
कभी तो ये मन रीझेंगे .
तृण की पुलकावली भर
तुहिन कणों से उसके ,
अभिसिंचित हो उठे तरुवर
लिख कवित्त,विरुदावली गाते
लेखनी श्रेष्ठ कविवर
पादप, विटपि, विरल विजन में,
भीग रहे नख -सर
पा प्रेम सुधा को अंक में ,
स्वनाम धन्य हो रहे सरोवर
कृतार्थ भाव मानती धरा,
खग कुल -कुल गाते सस्वर
अलि गुंजत है अमलतास पर ,
ढूंढ़ रहे सुमधुर पराग
आली निरखत है निज प्रिय को,
भरे नयन अतुल अनुराग
प्रणयातुर विहग-कीट उल्लासित,
अविचल गाते प्रेम राग
कलह--प्रेम की मूर्ति, हम मानव
मेघो से कब सीखेंगे
ऊपर उठकर निज स्वार्थ से
युग बृक्ष को कब सीचेंगे
शत योजन आच्छादित मेघो पर
कभी तो ये मन रीझेंगे .